Mahua Vidhan Sabha Seat: कभी ललन सिंह, कभी तेजप्रताप का भौकाल- अब 2025 में किसके हाथ जाएगी सत्ता?

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Mahua Vidhan Sabha Seat

Mahua Vidhan Sabha Seat: बिहार की राजनीति में वैशाली जिले की महुआ विधानसभा सीट का एक अलग ही महत्व रहा है। यह सीट हमेशा से राजनीतिक उतार-चढ़ाव, बाहुबली नेताओं के दबदबे और राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही है। कभी जेडीयू के दिग्गज नेता ललन सिंह, तो कभी आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव इस सीट से चर्चा में रहे हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, महुआ का चुनावी समीकरण एक बार फिर बेहद दिलचस्प हो गया है।

महुआ सीट का राजनीतिक इतिहास

  • 2000 के दशक की शुरुआत तक महुआ सीट पर जेडीयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर रहती थी।
  • 2005 और 2010 के चुनाव में जेडीयू ने अच्छा प्रदर्शन किया और महुआ पर पकड़ मजबूत की।
  • 2015 का चुनाव सबसे चर्चित रहा, जब लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने जेडीयू उम्मीदवार अजय कुमार को हराकर यह सीट अपने नाम की। यह जीत महागठबंधन के लिए बड़ी कामयाबी साबित हुई थी।
  • 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर रही। तेजप्रताप यादव को जनता ने बड़ा नेता मानकर जीत दिलाई, लेकिन उनकी छवि पर विवाद और गैर-गंभीर राजनीति के आरोप भी लगे।

महुआ सीट पर “भौकाल” किसका रहा?

महुआ विधानसभा का जिक्र आते ही दो नाम सामने आते हैं-

  • ललन सिंह (जेडीयू के दिग्गज नेता और वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यक्ष) – जिनकी छवि मजबूत संगठनकर्ता की रही है।
  • तेजप्रताप यादव (लालू यादव के बड़े बेटे) – जो अपनी पारिवारिक राजनीति और यादव-मुस्लिम समीकरण के चलते महुआ से मजबूत स्थिति में रहे। लेकिन इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद देखने वाली बात ये होगी की तेज प्रताप का भैकाल महुआ में बना रहेगा या परिवार से अनबन के बाद जनता भी उन्हें साइड कर देगी। पिछले कुछ सालों में तेजप्रताप की छवि कमजोर हुई है और स्थानीय जनता अब विकास के मुद्दे पर सवाल पूछ रही है।

2025 के चुनावी समीकरण और मुद्दे

  • जातीय समीकरण: यादव, भूमिहार और ब्राह्मण मतदाता यहां की राजनीति तय करते हैं। यादव-मुस्लिम गठजोड़ आरजेडी को मजबूती देता है, जबकि भूमिहार-ब्राह्मण वोट NDA को फायदा पहुंचा सकते हैं।
  • विकास बनाम जातिवाद: पिछले 10 सालों से जनता विकास, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की मांग कर रही है।
  • नेताओं की छवि: तेजप्रताप यादव का “भौकाल” जरूर है, लेकिन उनकी कार्यशैली और विवादित बयानों और परिवार से मतभेद के चलते मतदाताओं में असंतोष भी है। वहीं, जेडीयू-भाजपा इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश में हैं।

2025 में महुआ का रण

एनडीए की तरफ से जेडीयू और बीजेपी किसी नए चेहरे को उतार सकती है, ताकि यादव-मुस्लिम समीकरण को तोड़ा जा सके।

महुआ विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी में मुस्लिम और यादव समाज की अनुमानित हिस्सेदारी करीब 35 फीसदी है. मुस्लिम और यादव आरजेडी के कोर वोटर माने जाते हैं. अनुमानों के मुताबिक महु्रआ में अनुसूचित जाति की आबादी भी 21 फीसदी के आसपास है, जिसमें पासवान और रविदास समाज की बहुलता है.तेज प्रताप किसी दूसरी पार्टी से या निर्दलीय मैदान में उतरते हैं, तो आरजेडी के कोर वोटबैंक मं बंटवारे की स्थिति बन सकती है.

महुआ विधानसभा सीट का इतिहास गवाह है कि यहां कभी जातीय समीकरण तो कभी बाहुबल का असर हावी रहा है। तेजप्रताप यादव की लोकप्रियता और ललन सिंह की राजनीतिक पकड़ के बीच अबकी बार मुकाबला और दिलचस्प होगा। 2025 के चुनाव में यह देखना अहम होगा कि महुआ की जनता किसे चुनती है – तेजप्रताप का भौकाल या NDA का नया चेहरा।

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