
Nitish Kumar political career: गंगा और उसकी सहायक नदियों (गंडक, कोसी और कमला) के किनारे बसे बिहार की राजनीति पिछले दो दशकों से एक ही चेहरे के इर्द-गिर्द घूमती रही है- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। 2005 में लालू प्रसाद यादव के लंबे शासन को खत्म कर सत्ता में आए नीतीश ने बिहार को नई पहचान दी। वे कभी “सुशासन बाबू” कहे गए, कभी “पलटू राम”। लेकिन आज भी वे राज्य की राजनीति में किंगमेकर और निर्णायक फैक्टर बने हुए हैं।
2025 विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक करियर की आठवीं बड़ी परीक्षा होगी। 20 साल से ज्यादा सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश को अब भी एक “स्विंग फैक्टर” कहा जाता है।
ताकत: सुशासन और महिला वोटर्स का भरोसा
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत उनकी गवर्नेंस की छवि है। 2005 में जब वे सत्ता में आए, तो बिहार “जंगलराज” के नाम से बदनाम था। सड़कों, बिजली, स्कूलों और कानून-व्यवस्था में सुधार ने उन्हें आम जनता का नेता बना दिया।
महिला वोटरों में उनकी लोकप्रियता आज भी मजबूत है। हाल ही में आए एक सर्वे में करीब 60% महिलाएं नीतीश के पक्ष में दिखीं, जबकि महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को मात्र 28% का समर्थन मिला। साइकिल, स्कॉलरशिप और पंचायतों में महिलाओं की 50% भागीदारी जैसे फैसलों ने उन्हें महिलाओं का पसंदीदा नेता बना दिया।
कमजोरियां: सत्ता की थकान और बार-बार पाला बदलना
हालांकि, नितीश कुमार के लंबे समय तक सत्ता में रहने का नुकसान भी हुआ है। युवाओं के लिए रोजगार आज भी बड़ी समस्या है।
शराबबंदी नीति का असर उल्टा पड़ा है- काला बाज़ार और पुलिसिया भ्रष्टाचार बढ़ा है।
उनकी बार-बार की राजनीतिक पलटी (BJP से RJD, फिर BJP) ने उनकी छवि को कमजोर किया है। विरोधी उन्हें “पलटू राम” कहकर तंज कसते हैं।
मौके: मध्य रास्ते की राजनीति
आज के ध्रुवीकृत माहौल में नीतीश की सबसे बड़ी ताकत उनका मध्यमार्ग है। वे हिंदुत्व की राजनीति में भी स्वीकार्य हैं और सामाजिक न्याय की राजनीति में भी। यही वजह है कि वे NDA और महागठबंधन- दोनों में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी छवि एक “सभी को स्वीकार्य नेता” की रही है। ऐसे में 2025 में fractured mandate (टूटी हुई जनादेश) की स्थिति में वे फिर से किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं।
समय और युवा नेताओं का उभार
नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती समय और बदलता राजनीतिक परिदृश्य है। 20 साल बाद लोग बदलाव चाहते हैं। तेजस्वी यादव युवाओं और नई पीढ़ी के नेता के रूप में उभर रहे हैं।
भाजपा अपनी संगठनात्मक ताकत और संसाधनों के बल पर नीतीश की प्रासंगिकता को चुनौती दे रही है।
नीतीश का शांत, लो-प्रोफाइल स्टाइल अब सोशल मीडिया और आक्रामक चुनावी राजनीति के दौर में फीका पड़ता दिख रहा है।
नीतीश का राजनीतिक रहस्य
2025 के बिहार चुनाव से पहले तस्वीर साफ है- नीतीश कुमार अब भी राजनीति के केंद्र में हैं, लेकिन उतने ही हाशिये पर भी। वे सत्ता के लिए जरूरी हैं, लेकिन निर्णायक नहीं। वे ‘अवश्यक भी हैं और विकल्प भी।’ शायद यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है- चुपचाप टिके रहना। जैसे गंगा निरंतर बहती है, वैसे ही नीतीश भी राजनीति की धारा में लगातार बहते रहे हैं।
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