
Suicide Awareness Program: विश्व आत्महत्या रोकथाम माह के अवसर पर शनिवार को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आत्महत्या जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। “फ्रॉम शैडोज़ टू लाइट: चेंजिंग द नैरेटिव टुगेदर” शीर्षक से हुए इस कार्यक्रम को सायकनेक्ट और अध्ययन – द बुक रीडिंग सोसाइटी, बीएचयू ने संयुक्त रूप से आयोजित किया। कार्यक्रम का आयोजन अटल इन्क्यूबेशन सेंटर, सीडीसी बिल्डिंग, बीएचयू स्थित सेमिनार हॉल में दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक हुआ।
इस आयोजन का मकसद आत्महत्या से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना, युवाओं में संवाद को प्रोत्साहित करना और मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझाना था। शुरुआत में सुश्री सोनाली और सुश्री नंदिनी ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचीं श्रीमती पल्लवी गुप्ता, जो ‘आंगन’ की संस्थापक, वरिष्ठ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और कंसल्टेंट साइकोथेरेपिस्ट हैं। उनका स्वागत सायकनेक्ट के संस्थापक व सीईओ श्री शुभम धाकड़ ने किया।
कार्यक्रम की सबसे खास झलक रही सायकनेक्ट का पहला प्रत्यक्ष मिनी पॉडकास्ट। इसका संचालन सुश्री प्रियंका और श्री प्रांजल ने किया, जबकि निर्देशन श्री शुभम धाकड़ और मॉडरेशन श्री राहुल सिंह ने संभाला। चर्चा में अवसाद, आत्मघाती प्रवृत्ति, आवेगशीलता और हीनभावना जैसी मनोस्थितियों पर विस्तार से बात हुई। इसी दौरान श्रीमती पल्लवी गुप्ता ने कहा — “हर इंसान को कम से कम पाँच ऐसे अपने लोग बनाने चाहिए जिनसे वह खुलकर बात कर सके। यही आत्महत्या रोकथाम की सबसे बड़ी शुरुआत है।”
इसके बाद हुए ओपन माइक सत्र में प्रतिभागियों ने अपनी कविताओं और अनुभवों के जरिए मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या रोकथाम पर भावनाएँ साझा कीं। वहीं पोस्टर प्रतियोगिता ने भी सभी का ध्यान खींचा। प्रतिभागियों ने “Silence Speaks, Compassion Listens” और “Hope Woven Into Tomorrow” जैसे विषयों पर अपनी रचनात्मकता पेश की।
कार्यक्रम का समापन सिल्विया प्लाथ की प्रसिद्ध पुस्तक ‘द बेल जार’ पर हुई गहन चर्चा से हुआ। इसमें अवसाद, सहायता माँगने के साहस और समाज में मौजूद कलंक पर विचार साझा किए गए। एक प्रतिभागी ने कहा — “सहायता माँगना ही अपने आप में साहस है। ऐसे कदम उठाने वालों को सम्मान मिलना चाहिए।”
अंत में, सायकनेक्ट के सीईओ श्री शुभम धाकड़ ने सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम युवाओं को यह संदेश देने के लिए है कि जीवन की मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, बातचीत और सहारा लेना ही असली समाधान है।
बीएचयू में हुआ यह आयोजन युवाओं को निराशा की अंधेरी गलियों से उम्मीद की रोशनी की ओर बढ़ने का संदेश देकर खत्म हुआ।
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