
Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जहां एनडीए और महागठबंधन आमने-सामने की टक्कर की तैयारी में हैं, वहीं प्रशांत किशोर (PK) का जनसुराज और लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव तीसरे विकल्प के रूप में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे हैं। लेकिन सवाल यही है कि—क्या बिहार की जनता तीसरे मोर्चे को मौका देगी? या फिर इतिहास खुद को दोहराएगा?
बिहार का वोटिंग पैटर्न और थर्ड फ्रंट की नाकामी
इतिहास गवाह है कि 2005 के बाद से बिहार में जनता ने हमेशा सीधी लड़ाई को ही प्राथमिकता दी है। तीसरे मोर्चे की एंट्री तो हर चुनाव में हुई, लेकिन उसका वोट शेयर दहाई अंक तक भी नहीं पहुंच पाया।
2020 विधानसभा चुनाव
- एनडीए और महागठबंधन को करीब 37-37% वोट मिले।
- चुनाव से पहले बने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (GDSF) को सिर्फ 6 सीटें मिलीं (AIMIM – 5, BSP – 1), वोट शेयर महज 4.5%।
- चिराग पासवान की LJP ने 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ 1 सीट मिली।
2015 विधानसभा चुनाव
- RJD-जदयू-कांग्रेस ने महागठबंधन बनाया।-
- वामदलों ने अलग लेफ्ट फ्रंट बनाकर 243 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 3 सीटें और 3.7% वोट शेयर ही हासिल कर सके।
2010 विधानसभा चुनाव
- कांग्रेस ने सभी 243 सीटों पर लड़कर तीसरे मोर्चे की भूमिका निभाई।
- परिणाम—सिर्फ 4 सीटें और 8.4% वोट शेयर।
- वामदलों को भी महज 1 सीट से संतोष करना पड़ा।
2005 विधानसभा चुनाव (अक्टूबर)
- यहां भी तीसरे मोर्चे की कोशिश नाकाम रही और जनता ने सीधी लड़ाई को ही प्राथमिकता दी।
2025 में PK और तेजप्रताप की चुनौती
अब 2025 के विधानसभा चुनाव में PK का जनसुराज और तेजप्रताप यादव अलग-अलग मोर्चे के रूप में उतरने की तैयारी में हैं। लेकिन वोटिंग पैटर्न के हिसाब से उनका सफर आसान नहीं होगा।
जनता का भरोसा अब भी NDA बनाम महागठबंधन की जंग पर टिका है। ऐसे में तीसरे मोर्चे को वोट ट्रांसफर कराने या भरोसा जीतने की चुनौती पहले से कहीं अधिक कठिन है।
स्पष्ट है कि—2005 से 2020 तक के सभी चुनावों में तीसरे मोर्चे की नाकामी यह दर्शाती है कि बिहार की जनता सीधी लड़ाई पसंद करती है, न कि बिखरे हुए विकल्प।
अब देखना होगा कि क्या 2025 में प्रशांत किशोर और तेजप्रताप यादव इस इतिहास को बदल पाएंगे, या फिर बिहार का वोटिंग पैटर्न एक बार फिर उन्हें गच्चा देगा।
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