
Bihar Chunav 2025: मधेपुरा विधानसभा की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है। यह वही जमीन है जहां से मंडल कमीशन के अध्यक्ष रहे बी. पी. मंडल ने अपना सियासी सफर शुरू किया और समाजवादी नेता शरद यादव ने दशकों तक अपनी पकड़ बनाए रखी। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में तस्वीर बदलने जा रही है। पुराने दिग्गजों की जगह अब उनकी अगली पीढ़ी मैदान में उतरने को तैयार है।
निखिल मंडल फिर करेंगे किस्मत आज़माई
बी. पी. मंडल के पौत्र निखिल मंडल एक बार फिर जेडीयू से टिकट के दावेदार हैं। 2020 में उन्होंने मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन सफलता नहीं मिली। इस बार भी वे क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। उनके पिता मणींद्र मंडल उर्फ ओम बाबू दो बार इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। यही वजह है कि निखिल को पार्टी का स्वाभाविक चेहरा माना जा रहा है।
शरद यादव के बेटे मैदान में
समाजवादी नेता शरद यादव के निधन के बाद अब उनके बेटे शांतनु बुंदेला पर सबकी नज़र है। वे आरजेडी से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। उनकी बहन सुभाषिणी ने पिछली बार बिहारीगंज से किस्मत आज़माई थी, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। शांतनु ने पिछले ढाई सालों में मधेपुरा को ही अपनी राजनीति की कर्मभूमि बनाया है।
यादव परिवार की भी तैयारी
विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा सदस्य रह चुके डॉ. आर. के. यादव रवि के बेटे कुमार चंद्रदीप भी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में वे आरजेडी प्रत्याशी थे, लेकिन करारी हार झेलनी पड़ी। अब वे फिर से विधानसभा टिकट की दौड़ में हैं, हालांकि सीटिंग विधायक प्रो. चंद्रशेखर के रहते उनकी राह आसान नहीं दिख रही।
आलमनगर सीट पर ड्योढ़ी परिवार का दबदबा
मधेपुरा के साथ-साथ आलमनगर सीट पर भी चुनावी समीकरण दिलचस्प है। यहां ड्योढ़ी परिवार के दो भाई आमने-सामने खड़े हैं। बागेश्वरी प्रसाद सिंह के पौत्र सर्वेश्वर सिंह कांग्रेस से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं, उनके छोटे भाई डॉ. विक्रम सिंह ने आरजेडी का दामन थाम लिया है। 2020 में सर्वेश्वर जाप से चुनाव लड़ चुके हैं।
दिग्गजों के बेटे टिकट की तलाश में
पूर्व सांसद आरपी यादव के पुत्र डॉ. सत्यजीत यादव भी इस बार जेडीयू से टिकट की आस लगाए बैठे हैं। वे लंबे समय से पार्टी में सक्रिय हैं और खुद को गंभीर दावेदार के तौर पर पेश कर रहे हैं।
चुनावी समीकरण क्यों है दिलचस्प?
मधेपुरा और आलमनगर की सीटों पर इस बार मुकाबला खास इसलिए है क्योंकि मैदान में लगभग हर बड़े राजनीतिक परिवार की अगली पीढ़ी उतरी है। मंडल कमीशन से लेकर शरद यादव और ड्योढ़ी परिवार तक — हर कोई चाहता है कि उसके घर का वारिस राजनीति में अपनी पकड़ बनाए।
स्थानीय लोग भी इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि क्या नई पीढ़ी अपने दिग्गजों की तरह जनता से जुड़ पाएगी या सिर्फ परिवारवाद का टैग लेकर चुनावी अखाड़े में रह जाएगी। कुल मिलाकर, मधेपुरा और आसपास की सीटों पर इस बार का चुनाव सिर्फ दलों के बीच मुकाबला नहीं होगा, बल्कि यह परिवार बनाम परिवार और वारिस बनाम वारिस की सीधी जंग होगी।
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