बिहार में शराब पर ‘महाभारत’, प्रशांत किशोर के दावे पर JDU-RJD ने किया पलटवार!

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Bihar Chunav 2025

Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में “शराबबंदी” का मुद्दा एक बार फिर सियासी तूफान बनकर लौट आया है। जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) के हालिया बयान ने पूरे राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है। प्रशांत किशोर ने कहा है कि अगर जनसुराज पार्टी सत्ता में आती है, तो कैबिनेट की पहली बैठक में ही शराबबंदी कानून खत्म कर दिया जाएगा।

उन्होंने दावा किया कि शराबबंदी बिहार में पूरी तरह असफल रही है और इसका न तो सामाजिक असर पड़ा और न ही अपराध में कोई कमी आई। उलटे- अवैध शराब, तस्करी और अपराध का ग्राफ बढ़ गया। प्रशांत किशोर ने कहा- यह शराबबंदी नहीं, दिखावा है। सरकार इसे लागू नहीं कर पाई। जो पीना चाहता है, वो आज भी पी रहा है— फर्क सिर्फ इतना है कि अब शराब महंगी और अवैध हो गई है।”

उन्होंने आरोप लगाया कि इस कानून के चलते गरीब और दलित परिवारों को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है। “जिनके घरों में दिहाड़ी मजदूर हैं, वे जेल में हैं, जबकि असली कारोबारी बाहर घूम रहे हैं।

JDU ने दिया करारा जवाब

पीके के इस बयान पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। जेडीयू नेता खालिद अनवर ने कहा- शराबबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जो गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित है। प्रशांत किशोर गांधीजी की तस्वीर अपने झंडे पर लगाते हैं और शराबबंदी खत्म करने की बात करते हैं – यह गांधी के आदर्शों का अपमान है।

जेडीयू प्रवक्ताओं ने तंज कसते हुए कहा कि – पीके को पहले अपने जनसुराज के झंडे से गांधीजी की तस्वीर हटा देनी चाहिए, क्योंकि उनके विचारों के खिलाफ जाकर राजनीति करना दोहरा चरित्र दिखाता है।

अब RJD भी मैदान में उतरी

वहीं तेजस्वी यादव की RJD ने भी इस मसले पर पीके को घेरा, हालांकि उनका रुख थोड़ा अलग रहा। RJD प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा – शराबबंदी कानून जनता की मांग पर महागठबंधन सरकार ने लागू किया था। लेकिन जब नीतीश कुमार ने पलटी मारकर NDA के साथ सरकार बनाई, तब इसका क्रियान्वयन कमजोर पड़ गया।

तेजस्वी यादव ने कहा कि- अगर उनकी सरकार बनती है तो शराबबंदी कानून की समीक्षा की जाएगी ताकि इसे व्यवहारिक और प्रभावी बनाया जा सके।

बिहार में शराबबंदी: सुधार या असफल प्रयोग?

अप्रैल 2016 में नीतीश सरकार ने शराबबंदी लागू की थी। तब कहा गया था कि इससे घरेलू हिंसा, अपराध और सामाजिक बुराइयों पर लगाम लगेगी। लेकिन आठ साल बाद नतीजे मिले-जुले हैं। बिहार में अवैध शराब कारोबार फल-फूल रहा है। हर साल हजारों लोग स्पिरिट जहरीली शराब पीने से मरते हैं। जेलों में शराबबंदी से जुड़े मामलों के आरोपी सबसे ज़्यादा हैं। इसी पृष्ठभूमि में पीके का बयान विपक्ष और सत्ता— दोनों के लिए चुनौती बन गया है।

चुनावी मोर्चे पर “शराब” बना मुख्य मुद्दा

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद अब केवल कानून की बहस नहीं, बल्कि “नीतीश बनाम प्रशांत किशोर” के टकराव का रूप ले रहा है। जहां जेडीयू इसे गांधीवादी छवि का हिस्सा बताकर बचाव कर रही है, वहीं जनसुराज इसे “फेल्ड एक्सपेरिमेंट” बता कर जनता के दर्द से जोड़ने की कोशिश में है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि इस “शराब पर महाभारत” में जनता किस पक्ष के साथ खड़ी होती है- क्या लोग गांधीवादी नैतिकता को चुनेंगे या प्रशांत किशोर की व्यावहारिक राजनीति को?

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