
Bihar Election 2025: राजनीति में एक बार फिर पुराने रिश्तों के जोड़ने और तोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और पूर्व सांसद अरुण कुमार आज यानी 11 अक्टूबर को आखिरकार जदयू में घर वापसी कर रहे हैं। चस्प बात यह है कि उनकी वापसी वही नेता करा रहे हैं, जिन्होंने कुछ दिन पहले उनकी एंट्री पर वीटो लगा दिया था, यानी राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह।
अरुण कुमार की वापसी का ऐलान
सूत्रों के मुताबिक, शनिवार दोपहर करीब तीन बजे जहानाबाद से पूर्व सांसद अरुण कुमार जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल होंगे। पहले उनकी वापसी 4 सितंबर को तय थी, लेकिन ऐन वक्त पर कार्यक्रम टल गया था। तब अरुण कुमार ने इसे ‘बिहार बंद’ की वजह बताया था, मगर हकीकत कुछ और थी, राजनीतिक खींचतान और ईगो क्लैश।
ललन सिंह और अरुण कुमार का पुराना टकराव
जदयू से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि अरुण कुमार की वापसी को ललन सिंह ने पहले मंजूरी नहीं दी थी। दोनों के बीच वर्षों पुरानी रंजिश रही है, वजह है भूमिहार नेतृत्व की राजनीति और ईगो का टकराव। दरअसल, दोनों ही नेता एक ही सामाजिक वर्ग से आते हैं और दोनों की मगध क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। यही राजनीतिक प्रतिस्पर्धा उनकी अदावत की जड़ मानी जाती है।
वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन के मुताबिक, अरुण कुमार पढ़े-लिखे और तेजतर्रार नेता हैं। भूमिहार समाज में उनकी मजबूत पकड़ है। यही बात ललन सिंह को असहज करती थी। नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्तों में ललन सिंह हमेशा एक निर्णायक फैक्टर रहे हैं।
समता पार्टी से लेकर आरएलएसपी तक का सफर
अरुण कुमार राजनीति में लंबे वक्त से सक्रिय रहे हैं। वे समता पार्टी के दिनों से नीतीश कुमार के साथ रहे। 1999 से 2004 तक वे जदयू के टिकट पर जहानाबाद से सांसद रहे। बाद में जब जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के रास्ते अलग हुए, तो अरुण कुमार भी धीरे-धीरे दूर होते गए।
इसके बाद उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर आरएलएसपी बनाई और 2014 में सांसद चुने गए। 2015 में पुटुस हत्याकांड के दौरान उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ विवादित बयान दिया, जिसके चलते उन पर केस हुआ और सजा भी हुई, हालांकि बाद में वे बरी हो गए।
नीतीश से टकराव और चिराग के साथ गठजोड़
नीतीश कुमार से मतभेद बढ़ने के बाद अरुण कुमार ने चिराग पासवान के साथ हाथ मिलाया। लेकिन ये साझेदारी भी ज्यादा दिन नहीं चली। लोकसभा टिकट न मिलने से नाराज होकर उन्होंने चिराग से दूरी बना ली। इसी दौरान उन्होंने नीतीश कुमार पर भी विवादित आरोप लगाए कहा था कि “ललन सिंह, मुख्यमंत्री को खाने या दवा में कुछ मिलाकर दे रहे हैं, जिससे उन्हें मेमोरी लॉस हो रहा है।”
राजनीतिक वनवास और वापसी की कोशिशें
2019 के बाद से अरुण कुमार राजनीतिक रूप से लगभग वनवास में थे। वे सार्वजनिक मंचों से दूर रहे और बयानबाजी से भी परहेज़ किया। लेकिन पिछले छह महीनों से उन्होंने जदयू में वापसी के प्रयास तेज कर दिए। नीतीश कुमार के करीबी एक मंत्री के साथ उनकी गोपनीय मीटिंग हुई थी, जो उनके भाई अनिल कुमार (टेकारी विधायक, हम पार्टी) के घर पर संपन्न हुई।
अब क्यों अहम है यह वापसी
अरुण कुमार की जदयू में वापसी ऐसे वक्त हो रही है जब नीतीश कुमार का ध्यान फिर से मगध और भूमिहार वोट बैंक पर है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, नीतीश कुमार 2025 विधानसभा चुनाव से पहले पुराने सहयोगियों को साथ लाकर पार्टी की सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं। अरुण कुमार की वापसी उसी रणनीति का हिस्सा है।
ललन सिंह की भूमिका पर सबकी नज़र
सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जिन ललन सिंह ने पहले अरुण कुमार की एंट्री रोकी थी, अब वही वापसी के सूत्रधार बने हैं। राजनीति के गलियारों में इसे विवशता में पुनर्मिलन कहा जा रहा है – यानी एक-दूसरे के बिना अब न तो राजनीति चल रही है, न समीकरण।
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