बलात्कार-हत्या जैसे जघन्य अपराधों को भी अवसर बना देते हैं और सत्ता का गंदा खेल खेलते हैं ये राजनेता।

“आपदा में अवसर ढूंढना” ये कथन तो आपने सुना ही होगा और इस कथन को चरितार्थ करते हैं हमारे देश के राजनेता और तमाम राजनैतिक पार्टियां। भले हीं, पहली बार बिना बहुमत वाली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी! 15 अगस्त को लाल किले से जवान, किसान और महिला सम्मान की बातें कर तारीफ लूट रहे हैं। लेकिन सच्चाई तो यही है कि, मणिपुर, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की तमाम क्रूर घटनाओं पर सच, रवे की तरह साफ दिखता है। जब-जब देश मे कोई ऐसी घटना सामने आती है, जो बड़े आंदोलन का रूप धारण करती है। तब-तब देश की विभिन्न राजनैतिक पार्टियां, उन घटनाओं को जाति-धर्म और वोट बैंक की राजनीति का चोला पहनाकर, सत्ता की रोटियां सेंकना चाहती है। चाहें मामला जवान, किसान और महिला सम्मान से ही क्यों ना जुड़ा हो। यहां तक कि, बलात्कार-हत्या जैसे जघन्य अपराधों को भी अवसर बना देते हैं और सत्ता का गंदा खेल खेलते हैं ये राजनेता। कुछ ऐसा ही हो रहा है, कोलकाता रेप-मर्डर केस में। जहां अस्पताल में तोड़फोड़ करने वाली भीड़ से जुड़े हैं कई सवाल, जिनके जवाब अभी बाकी हैं।
बता दें कि कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर की रेप के बाद हत्या के मामले में बुधवार का दिन बेहद अहम था। क्योंकि 14 और 15 अगस्त के बीच की वह रात, जब महिला संगठनों और सिविल सोसाइटी से जुड़े लोगों ने ‘री क्लेम द नाइट’ का नारा देकर महिलाओं के सड़क पर उतरने का आह्वान किया था। तब, ऐसे में आरजी कर में चल रहे डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन के दौरान मंच महिला छात्रों के हवाले कर दिया गया। उसी मंच पर डॉक्टर विशाखा भी मौजूद थीं। बीबीसी से बातचीत में डॉक्टर विशाखा, उस रात का मंज़र बयान करतीं हैं, जब एक अज्ञात भीड़ ने धरना स्थल पर हमला कर दिया और देर रात जमकर तोड़फोड़ की गई। धरनास्थल पर तोड़फोड़ के मामले में, कोलकाता पुलिस अब तक 19 लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है। लेकिन ये लोग कौन थे? धरने वाली जगह आने के पीछे इनका मक़सद क्या था? ऐसे कई सवालों के जवाब अभी भी नहीं मिले हैं। आखिर ये भीड़ कहाँ से आई? और इस भीड़ में शामिल लोग कौन थे? इसका पता नहीं चल पाया है।
लाठी-डंडों से लैस इस उन्मादी भीड़ ने, न सिर्फ़ प्रदर्शन स्थल को ध्वस्त किया बल्कि वहाँ पर रखी हुई कुर्सियों को भी तोड़ डाला। इस उन्मादी भीड़ का हमला यहीं तक सीमित नहीं था। इसके बाद उसके निशाने पर अस्पताल का इमर्जेंसी वार्ड भी था, जिसे पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया। अस्पताल के डॉक्टर और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि सबकुछ एक घंटे से भी ज़्यादा तक चलता रहा। इस बीच वहाँ पर तैनात पुलिस वालों से भी भीड़ की झड़प हुई और भीड़ ने अस्पताल के मुख्य द्वार पर मौजूद बैरिकेड को भी तोड़ डाला। कुछ छात्रों और पुलिस वालों को इन झड़पों में चोटें आईं। इस दौरान, अस्पताल के मुख्य द्वार पर मौजूद सीसीटीवी के कुछ कैमरों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। लेकिन जो कैमरे काम कर रहे थे, उनकी बदौलत कुछ लोगों की शिनाख्त की गई है और इनमें से 12 लोगों को गिरफ़्तार भी कर लिया गया। लेकिन सवाल अब भी यही है- आखिर ये लोग कौन हैं और किस संगठन या राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं? क्या कानून व्यवस्था इतनी ध्वस्त है, जो इन मनबढ़ भीड़ को नहीं रोक पाई या इन्हें राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त है।
अब एक बार फिर देखना है कि, कोलकाता रेप-मर्डर केश में शामिल आरोपियों को सजा मिलती है या मृत डॉक्टर बिटिया की आत्मा भी न्याय की आस में दम तोड़ देगी। क्योंकि राजनेताओं को वोट बैंक की राजनीति से फुर्सत ही कहाँ है। इस जघन्य घटना को भी लेकर राजनीतिक छींटाकशी भी शुरू हो गई है। जहाँ राज्य की मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि भीड़, बीजेपी और वाम दलों के समर्थकों की थी, वहीं विधानसभा में शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि भीड़ में जो लोग शामिल थे वो तृणमूल कांग्रेस के ‘गुंडे’ थे।
वहीं, कल सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर फॉर इंडिया ने 12 घंटों के बंद का आह्वान किया है, जिसका समर्थन भारतीय जनता पार्टी ने भी किया है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी तोड़फोड़ की ‘घटना के विरोध’ में कोलकाता में शुक्रवार को रैली निकालेंगी। कुल मिलाकर देखा जाए तो फिलहाल पश्चिम बंगाल में राजनीति गरमा गई है और मौजूदा घटनाक्रम, आने वाले दिनों में राजनीतिक संघर्ष के नए दौर की तरफ संकेत कर रहा है। बिटिया को न्याय मिले ना मिले, लेकिन सत्तालोभी गिद्धों को उनकी राजनैतिक कुर्सी जरूर मिलेगी।