बिहार में पीके का मास्टरस्ट्रोक: करगहर या राघोपुर से बदलेंगे बिहार की राजनीति

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Bihar Politics

Bihar Politics : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीति का सबसे बड़ा सरप्राइज़ अब सामने आने वाला है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने साफ कर दिया है कि वह इस बार सीधे मैदान में उतरेंगे। खास बात यह है कि पीके ने तेजस्वी यादव को खुली चुनौती देते हुए कहा है कि वे राघोपुर से भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं। वहीं, कयास यह भी हैं कि वह अपनी जन्मभूमि करगहर से किस्मत आज़मा सकते हैं। ऐसे में सवाल है कि—पीके का यह कदम, तेजस्वी और महागठबंधन के लिए कितना बड़ा खतरा साबित होगा?

करगहर: पीके की जन्मभूमि

रोहतास जिले की करगहर विधानसभा सीट पूरी तरह ग्रामीण इलाक़ा है और ससाराम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यहां के सामाजिक समीकरण में कुशवाहा-कोइरी, यादव, एससी और ईबीसी समुदाय अहम भूमिका निभाते हैं। अब तक करगहर में सड़क, सिंचाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार ही प्रमुख चुनावी एजेंडा रहे हैं।

करगहर पीके की जन्मभूमि है, ऐसे में यहां उनकी “जमीनी पकड़” और स्थानीय कनेक्शन बड़ा फैक्टर बन सकता है। करगहर से चुनाव लड़ने पर कांग्रेस, एनडीए और जन सुराज के बीच त्रिकोणीय मुकाबला तय है। पश्चिमी बिहार के दिनारा, काराकट, डेहरी जैसी सीटों पर भी इसका सीधा असर होगा।

यदि पीके करगहर से उतरते हैं तो, ग्रामीण बिहार में तीसरे विकल्प यानी जन सुराज पार्टी को ज़मीन से जुड़ा मजबूत आधार मिल सकता है।

राघोपुर: तेजस्वी के गढ़ में सीधी चुनौती

वैशाली जिले की राघोपुर सीट लालू परिवार का गढ़ मानी जाती है। यहां का चुनावी समीकरण हमेशा से MY (मुस्लिम-यादव) और स्थानीय ओबीसी/ईबीसी समुदाय पर टिका है।

बाढ़ नियंत्रण, सड़क, शिक्षा-स्वास्थ्य और रोज़गार यहां के प्रमुख मुद्दे हैं। यदि पीके यहां से उतरते हैं तो यह सीधा पीके बनाम तेजस्वी का हाई-प्रोफ़ाइल मुकाबला होगा। मीडिया कवरेज, फंडिंग और स्वयंसेवी उत्साह—तीनों ही मोर्चे पर जन सुराज पार्टी को बड़ा फायदा मिल सकता है।

हालांकि, यह भी सच है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने यहां से 38,000+ वोटों की बड़ी बढ़त से जीत हासिल की थी। ऐसे में लालू परिवार के इस “किले” को भेदना आसान नहीं होगा।

लेकिन, पीके का “स्कूल बैग” चुनाव चिन्ह और उनका शिक्षा-रोज़गार एजेंडा, राघोपुर में बाढ़-राहत, स्वास्थ्य, स्कूल-कॉलेज और कौशल विकास जैसे ठोस मुद्दों से मेल खा सकता है। यदि यह रणनीति कारगर रही तो राघोपुर में बड़ा उलटफेर संभव है।

दोनों सीटों से ‘लाभ’ में रहेंगे पीके

करगहर से लड़ने पर जन सुराज को ग्रामीण बिहार में जमीनी मजबूती और संगठनात्मक विस्तार मिलेगा।

राघोपुर से उतरने पर सीधे लालू परिवार को चुनौती देकर पीके राज्य-स्तर की राजनीति में मुख्य धारा में आ जाएंगे।

यानी साफ है कि प्रशांत किशोर की चाल ने महागठबंधन और एनडीए दोनों को हैरान कर दिया है। अब देखना यह होगा कि पीके “स्थानीय जड़ों” को चुनते हैं या फिर “तेजस्वी को सीधी चुनौती” देकर हाई-प्रोफ़ाइल जंग छेड़ते हैं।

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