बिहार का 5 दिन का सबसे युवा मुख्यमंत्री, जीत लिया था सबका दिल, बना दिया था रिकॉर्ड

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Bihar Election 2025

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख भले ही अभी तय नहीं हुई है, लेकिन पटना से लेकर भागलपुर तक चुनावी माहौल की गहमागहमी साफ नजर आने लगी है। चाय की दुकानों से लेकर नुक्कड़ों तक हर जगह सिर्फ चुनावी चर्चा है। ऐसे में जब हम आज की राजनीति की बात करते हैं, तो बिहार के इतिहास के उस चुनाव को भुलाया नहीं जा सकता जिसने कई नए कीर्तिमान रचे। यह था साल 1967 का विधानसभा चुनाव, जिसने पहली बार राज्य को गैर-कांग्रेसी सरकार दी और साथ ही एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ सका—5 दिन का मुख्यमंत्री।

1967 का चुनाव और गैर-कांग्रेसी सरकार का उदय

1967 में बिहार की 318 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को 128 सीटें मिलीं। वहीं संयुक्त समाजवादी पार्टी (SSP) ने 68, जनक्रांति दल ने 13 और भारतीय जनसंघ ने 26 सीटें जीतीं। जोड़तोड़ की राजनीति के बीच जनक्रांति दल के नेता महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। उनकी सरकार को SSP, जनसंघ, प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी और भाकपा का समर्थन मिला।

जनवरी 1968: जब हुआ सत्ता का ‘खेला’

पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय ने विपक्ष में रहते हुए सरकार को गिराने की योजना बनाई। उन्होंने SSP नेता बीपी मंडल को मुख्यमंत्री बनाने का ऑफर दिया। उस समय मंडल सांसद थे और छह महीने में विधानसभा या विधानपरिषद सदस्य न बनने पर मंत्री पद से बाहर होने वाले थे। तकनीकी अड़चन को दूर करने के लिए तय हुआ कि उनके किसी विश्वस्त को कुछ दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाया जाए।

क्यों चुने गए सतीश प्रसाद सिंह?

बीपी मंडल के विश्वासपात्र के तौर पर खगड़िया निवासी सतीश प्रसाद सिंह का नाम सामने आया। जगदेव प्रसाद का नाम भी प्रस्तावित था, लेकिन मंडल ने सतीश को तरजीह दी। नतीजा—महामाया प्रसाद की सरकार गिरी और सतीश प्रसाद सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने।

5 दिन की सरकार, बड़ा फैसला

भले ही सतीश प्रसाद सिंह सिर्फ 5 दिन (28 जनवरी से 1 फरवरी 1968) तक मुख्यमंत्री रहे, लेकिन इस दौरान उन्होंने एक ऐतिहासिक फैसला लिया। कैबिनेट बैठक में उन्होंने बिहार के किसानों को आलू राज्य से बाहर बेचने की अनुमति दे दी। इससे पहले आलू बाहर ले जाने पर रोक थी। इस निर्णय से खासकर कुशवाहा जाति के किसानों को फायदा मिला, क्योंकि आलू उत्पादन में उनकी हिस्सेदारी सबसे अधिक थी। यही वजह रही कि यह फैसला आज तक पलटा नहीं जा सका और राजनीति में कुशवाहा समुदाय को बड़ा वोटबैंक बना दिया।

रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड: सबसे युवा और पहले पिछड़ी जाति के CM

सतीश प्रसाद सिंह महज 32 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने, जो आज भी भारत में सबसे कम उम्र के सीएम का रिकॉर्ड है। इसके बाद असम के प्रफुल कुमार महंत 33 साल की उम्र में सीएम बने थे। साथ ही वे बिहार के पहले पिछड़ी जाति से मुख्यमंत्री बने, जिसने राज्य की राजनीति में सामाजिक समीकरणों को नई दिशा दी।

पांच दिन का ‘नायक’, लेकिन हमेशा याद रहेंगे

भले ही सतीश प्रसाद सिंह का कार्यकाल बेहद छोटा रहा, लेकिन उनकी कहानी लोगों को अनिल कपूर की फिल्म नायक की याद दिला देती है। मुख्यमंत्री बनने के बाद वे सुर्खियों में तो आए, लेकिन इसके बाद राजनीति में उन्हें वह जगह नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। बावजूद इसके, उनके गांव का नाम ‘सतीश नगर’ रख दिया गया।

कोरोना ने छीन लिया

सतीश प्रसाद सिंह का निधन 2 नवंबर 2020 को कोरोना संक्रमण के कारण हो गया। 5 दिन का मुख्यमंत्री रहने के बावजूद वे बिहार की राजनीति में एक अनोखी पहचान छोड़ गए, जिसे मिटाया नहीं जा सकता।

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